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यदी॑ सु॒तेभि॒रिन्दु॑भिः॒ सोमे॑भिः प्रति॒भूष॑थ। वेदा॒ विश्व॑स्य॒ मेधि॑रो धृ॒षत्तन्त॒मिदेष॑ते ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadī sutebhir indubhiḥ somebhiḥ pratibhūṣatha | vedā viśvasya medhiro dhṛṣat taṁ-tam id eṣate ||

पद पाठ

यदि॑। सु॒तेभिः॑। इन्दु॑ऽभिः। सोमे॑भिः। प्र॒ति॒ऽभूष॑थ। वेद॑। विश्व॑स्य। मेधि॑रः। धृ॒षत्। तम्ऽत॑म्। इत्। आ। ई॒ष॒ते॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:42» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे परस्पर क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जो जो (विश्वस्य) सम्पूर्ण राज्य का (मेधिरः) मेल करने और (धृषत्) दुष्टों का दबानेवाला (आ, ईषते) प्राप्त होता और राजा के व्यवहार को (वेदा) जानता है (तन्तम्, इत्) उसी उसको (यदी) जो (सुतेभिः) उत्पन्न किये (इन्दुभिः) आनन्दकारक (सोमेभिः) ऐश्वर्य्यों से आप लोग (प्रतिभूषथ) सुशोभित कीजिये तो यह भी आप लोगों को उत्तम प्रकार शोभित करे ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो उत्तम-उत्तम मनुष्यों का सत्कार करते हैं, वे सबको श्रेष्ठ गुणों से शोभित करते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते परस्परं किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यो यो विश्वस्य मेधिरो धृषदेषते राजव्यवहारं वेदा तन्तमिद्यदी सुतेभिरिन्दुभिस्सोमेभिर्यूयं प्रतिभूषथ तर्ह्ययमपि युष्मान् सम्भूषेत् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यदी) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सुतेभिः) निष्पादितैः (इन्दुभिः) आनन्दकरैः (सोमेभिः) ऐश्वर्यैः (प्रतिभूषथ) (वेदा) जानाति। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (विश्वस्य) सर्वस्य राज्यस्य (मेधिरः) सङ्गन्ता (धृषत्) दुष्टानां धर्षकः (तन्तम्) (इत्) एव (आ) (ईषते) प्राप्नोति। ईषतीति गतिकर्मा। (निघं०२.१४) ॥३॥
भावार्थभाषाः - य उत्तमानुत्तमान् जनान्त्सत्कुर्वन्ति ते सर्वाञ्छुभैर्गुणैरलं कुर्वन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे उत्तमोत्तम माणसांचा सत्कार करतात ते सर्वांना श्रेष्ठ गुणांनी शोभित करतात. ॥ ३ ॥